झारखंड राज्य की बुनियाद आंदोलनकारियों की आत्मा पर है: अविनाश देव |Jharkhand Andolan Sangharsh Morcha


झारखंड की धरती अंग्रेजों के जमाने से भाते रही है। जल जंगल जमीन और प्रकृति छटा पर युगल जोड़ी से लेकर कॉरपोरेटों की निगाहे टेढ़ी रही। यहां के मूल वाशिंदा मूलनिवासी आदिवासी आयातित अंग्रेजों और कॉरपोरेट घरानों के लुट नीति से हाशिए पर चले गए और ये मांयें माटी के आबरू पर भी डांका डाला। आजादी की पहली लड़ाई तो इतिहास में 1857 दर्ज है लेकिन हकीकत यह है कि आजादी की पहली लड़ाई 1854 में सिद्धू कानू के नेतृत्व में लड़ी गई जिसे हम हुल विद्रोह के नाम से जानते है। यह लुट नीति झारखंडी महापुरुषों ने दिल पर ले लिया एवं जान पर खेल गया। लंबे संघर्ष सैकड़ों गुमनाम शहादतें भूख प्यास और पसीना देकर झारखंड आंदोलनकारियों ने झारखंड राज्य को राजनीतिक मानचित्र पर लाया तब हम आज झारखंडी कहला रहे हैं। 

         झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा का आज पलामू प्रमंडल स्तरीय गुरु तेगबहादुर मेमोरियल हॉल में सम्मेलन था बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। मोर्चा के अध्यक्ष फूलमाला पुष्पगुच्छ मोमेंटो देकर स्वागत किए। दीप प्रज्ज्वलित कर सम्मेलन की शुरुआत किए। अपने वक्तव्य में उपरोक्त बातों को कोट करते हमने कहा कि सरकार अपनी है और आंदोलनकारियों को सरकारी खतियान में नाम दर्ज के लिए आंदोलन, प्रदर्शन और दफ्तर का चक्कर लगाना पड़ रहा है। झारखंड अलग राज्य के महान नेता और झामुमो के संस्थापक सदस्य दिशोम गुरुजी शिबू सोरेन सर गंगाराम अस्पताल नई दिल्ली में गहन चिकित्सा केंद्र पर हैं।हालत नाजुक बनी हुई है हम सभी मिल कर मरांग बुरु से कामना करें कि बाबा स्वस्थ होकर जल्दी झारखंड की धरती पर लौटें। अपने अपने इष्टदेव भगवान अल्लाह, वाहेगुरु,मसीह से सामूहिक प्रार्थना किए गुरुजी सकुशल वापस आएं और हम सबों को मार्गदर्शन करें।

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